कुछ तो बात थी

कुछ तो बात थी

कुछ तो बात बिलकुल थी,
जिसके दम पर ये दिलजला आशिक आप पे फिदा हो गया।
हमें पता ही नहीं चला,
कब ये दिल टूटा और कब ये आशिक आपकी अदा पे मर मिटा।

ये बेगम हसीना,
अगर आप चाहो ना,
तो हम सोना-चाँदी क्या,
पूरी दुनिया ही आपकी हथेली पर रख देते।
मगर क्या करें, हमने बुलाया,
पर आप तो कभी मुड़ी ही नहीं।

आपके प्यार में ये एकतरफ़ा आशिक ऐसा बन बैठा,
कि सुबह-शाम आपकी यादों में डूबता रहा।
वो वहीं रुक गया, जहाँ न सुबह होती है न शाम,
बस आपके नाम का जाप करता रहा।

हमें किसी बात का ग़म नहीं,
इस दर्दभरी अधूरी प्रेम कहानी को भुलाने के लिए
आपके साथ बिताए हुए चंद लम्हे ही काफ़ी हैं, हुस्न परी।

ग़म तो बस ये है—
क्या कभी ऐसा हुआ था?
कि आपने हमें बुलाया हो और हम हाज़िर न हुए हों?
या फिर आप भी नहीं आईं?
बस इसी बात का ग़म है।

ये बेपरवाह इंतज़ार बहुत बुरा है।
क्योंकि जब हम इस काबिल बन जाएँगे—
जहाँ आपकी हर बात और हर इच्छा का ज़िक्र हो—
तब तक शायद न आप इंतज़ार कर पाएंगी,
न हम आपके प्यार में तड़पते रहेंगे।

आख़िर ऐसा ही हुआ होगा…
अगर ये कमबख़्त इंतज़ार की घड़ी कोई खेल न खेलती,
तो इस जनम में हम आपको ही दिल दे चुके होते, सनम!

कुछ आखिरी बातें...

पर शायद यही मोहब्बत की खूबसूरती है।
जो अधूरी रह जाए, वही सबसे ज्यादा याद आती है।
आपकी मुस्कान हमारी दुआ बन गई है, बेगम।
और हमारा दर्द… बस एक कहानी।

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